शुक्र बारहवें घर मे

इस भाव मे शुक्र सबसे ज्यादा सुखो को देने वाला होता है, अगर किसी जातक का शुक्र बारहवें भाव मे हो तब उसके पास एक ना एक दिन सारे सुख वैभव, वाहन तथा अचल सम्पति प्राप्त होती है,,

शुक्र, वाहन, धन्, सम्पति ऐश्वर्य, भोग विलासिता का ग्रह माना गया है, जातक शुक्र की महादशा, तथा अन्तर्दशा मे बिशेष प्रकार के सुख पाता है, बारहवें भाव का शुक्र विवाह्परान्त जातक के भाग्य उत्थान के लिए जाना जाता है, “|

चुकी बारहवा भाव दुख द्वेष इत्यादि से सम्बन्ध रखता है, औऱ शुक्र दैत्य ग्रह होने के कारण जातक को अत्यधिक महत्वकांछी बना देता है, तथा मन की संतुस्टी मे कमी लाता है |

शुक्र बारहवें भाव मे बैठकर राजयोग निर्माण करता है, जो ज्योतिष विद्या मे महत्वपूर्ण स्थिति बताई जाती है |

शुक्र के अलावा यहाँ बाकि ग्रह अशुभ फल देते है, शुक्र औऱ बारहवें भाव का यह सम्बन्ध काफी बिशेष उपलब्धि यो वाला होता है |

नोट :शुक्र के साथ मंगल की युति दोषपूर्ण मानी जाती है, अगर बारहवें भाव मे शुक्र के साथ मंगल या केतु विराजमान हो तो शुक्र अपनी सुखो मे कमी ले आता है, इस दोष को दुर् करने के लिए हनुमान चालीसा तथा बजरंग बान विधिपूर्वक पढ़े |

Haritalika teej katha 2020 :हरितालिका तीज 2020

Haritalika teej katha 2020 :हरितालिका तीज 2020
हर साल भाद्रपद माष के शुक्लपक्ष के तीसरे दिन हरितालिका तीज की पूजा होती है, मान्यताये है की माँ पार्वती ने कठोर तप से भगवान शंकर को प्रसन्न किया तथा उनको पति रूप मे वर माँगा, माँ पार्वती की निष्ठां देख भगवान शंकर ने उन्हें मनोवांछित फल का वरदान दिया,, जिसके उपरांत भगवान शंकर और माँ पार्वती विवाह सूत्र मे बंध गए,,, 


माँ पार्वती की स्मरणीय गाथा द्वारा इस व्रत का उल्लेख किया गया है,, जिसके अनुसार कोई भी कुंवारी कन्या इस व्रत को कर के मनचाहा जीवनसाथी प्राप्त कर सकती है, तथा सुहागिने अपने सुहाग की लम्बी आयु और सुख समृद्धि के लिए यह व्रत करती है, इस व्रत मे सरगही खा कर, उपवास करती है, तथा संध्या सुहागिने सोलह श्रृंगार करके भगवान शंकर और माँ पार्वती की रेत से बनी प्रतिमा की पूजा कथा व आरती करती है ।
Haritalika teej puja shubh muhurt :हरितालिका तीज पूजा शुभ मुहूर्त हरितालिकातीज पूजा इस साल 21 अगस्त को मनाई जाएगी ।हरीतालिका पूजा शुभ मुहूर्त – शाम 6 बजकर 54 मिन्ट्स से लेकर रात 9 बजकर 6 मिनट तक ।Haritalika puja widhi, tatha niyam :हरितालिका पूजन विधि तथा नियम * इस दिन अपने हाथो से शिव परिवार की रेत अथवा काली मिट्टी से प्रतिमा बनाई जाती है ।
* पूजन से पहले चौकी को केले के पत्ते तथा पुष्प से मंडप की तरह सजाया जाता है ।
*प्रतिमा को मंडप मे विराजित कर, प्रदोषकाल मे अर्थात संध्या के समय पुरे मंत्रों पचार से पूजन करनी चाहिए ।
*सबसे पहले गणेश जी की पूजा विधिवत होती है उसके बाद भगवान शंकर और माता पार्वती की ।
* माँ पार्वती को सारी सुहाग की सारी वस्तुये दान किये जाते है ।* पूजन को बिच मे छोड़कर उठना नहीं चाहिए, एवं पुरे विधि विधान से पूजन करनी चाहिए तथा हरितालिका कथा का श्रवण करना चाहिए ।
*पूजन के बाद आरती कर भजन कीर्तन करना चाहिए, तथा रात्रि जागरण करना आवश्यक होता है ।हरितालिका तीज कथा : haritalika teej katha 

भगवान शंकर और माँ गौरी कैलाश पर्वत पर बैठे हुए थे तभी अचानक भगवान शिव ने कहा “हे गौरी! पर्वतराज हिमालय पर गंगा के तट पर तुमने अपनी बाल्यावस्था में अधोमुखी होकर घोर तप किया था। इस अवधि में तुमने अन्न ना खाकर केवल हवा का ही सेवन के साथ तुमने सूखे पत्ते चबाकर काटी थी।
माघ की शीतलता में तुमने निरंतर जल में प्रवेश कर तप किया था। वैशाख की जला देने वाली गर्मी में पंचाग्नी से शरीर को तपाया। श्रावण की मुसलाधार वर्षा में खुले आसमान के नीचे बिना अन्न जल ग्रहन किये व्यतीत किया। 
तुम्हारी इस कष्टदायक तपस्या को देखकर तुम्हारे पिता बहुत दुःखी और नाराज़ होते थे। तब एक दिन तुम्हारी तपस्या और पिता की नाराज़गी को देखकर नारदजी तुम्हारे घर पधारे।
तुम्हारे पिता द्वारा आने का कारण पूछने पर नारदजी बोले – ‘हे गिरिराज! मैं भगवान् विष्णु के भेजने पर यहाँ आया हूँ। आपकी कन्या की घोर तपस्या से प्रसन्न होकर वह उससे विवाह करना चाहते हैं। इस बारे में मैं आपकी राय जानना चाहता हूँ।’ नारदजी की बात सुनकर पर्वतराज अति प्रसन्नता के साथ बोले- ‘श्रीमान! यदि स्वंय विष्णुजी मेरी कन्या का वरण करना चाहते हैं तो मुझे क्या आपत्ति हो सकती है। वे तो साक्षात ब्रह्म हैं। यह तो हर पिता की इच्छा होती है कि उसकी पुत्री सुख-सम्पदा से युक्त पति के घर कि लक्ष्मी बने।’
नारदजी तुम्हारे पिता की स्वीकृति पाकर विष्णुजी के पास गए और उन्हें विवाह तय होने का समाचार सुनाया। परंतु जब तुम्हे इस विवाह के बारे में पता चला तो तुम्हारे दुःख का ठिकाना ना रहा। 
तुम्हे इस प्रकार से दुःखी देखकर, तुम्हारी एक सहेली ने तुम्हारे दुःख का कारण पूछने पर तुमने बताया कि – ‘मैंने सच्चे मन से भगवान् शिव का वरण किया है, किन्तु मेरे पिता ने मेरा विवाह विष्णुजी के साथ तय कर दिया है। मैं विचित्र धर्मसंकट में हूँ। अब मेरे पास प्राण त्याग देने के अलावा कोई और उपाय नहीं बचा।’ तुम्हारी सखी बहुत ही समझदार थी। 
उसने कहा – ‘प्राण छोड़ने का यहाँ कारण ही क्या है? संकट के समय धैर्य से काम लेना चाहिये। भारतीय नारी के जीवन की सार्थकता इसी में है कि जिसे मन से पति रूप में एक बार वरण कर लिया, जीवनपर्यन्त उसी से निर्वाह करे। सच्ची आस्था और एकनिष्ठा के समक्ष तो भगवान् भी असहाय हैं। 
मैं तुम्हे घनघोर वन में ले चलती हूँ जो साधना थल भी है और जहाँ तुम्हारे पिता तुम्हे खोज भी नहीं पायेंगे। मुझे पूर्ण विश्वास है कि ईश्वर अवश्य ही तुम्हारी सहायता करेंगे।’
तुमने ऐसा ही किया। तुम्हारे पिता तुम्हे घर में न पाकर बड़े चिंतित और दुःखी हुए। वह सोचने लगे कि मैंने तो विष्णुजी से अपनी पुत्री का विवाह तय कर दिया है। यदि भगवान् विष्णु बारात लेकर आ गये और कन्या घर पर नहीं मिली तो बहुत अपमान होगा, ऐसा विचार कर पर्वतराज ने चारों ओर तुम्हारी खोज शुरू करवा दी। 
इधर तुम्हारी खोज होती रही उधर तुम अपनी सहेली के साथ नदी के तट पर एक गुफा में मेरी आराधना में लीन रहने लगीं। भाद्रपद तृतीय शुक्ल को हस्त नक्षत्र था। उस दिन तुमने रेत के शिवलिंग तथा मंडप का निर्माण किया। सुन्दर सुन्दर फूलो से मंडप को सुसज्जित किया, रात भर अपने सखियों मेरी पूजा आरती की एवं मेरी स्तुति में गीत गाकर जागरण किया। 
तुम्हारी इस कठोर तपस्या के प्रभाव से मेरा आसन हिल उठा और मैं शीघ्र ही तुम्हारे पास पहुँचा और तुमसे वर मांगने को कहा तब अपनी तपस्या के फलीभूत मुझे अपने समक्ष पाकर तुमने कहा – ‘मैं आपको सच्चे मन से पति के रूप में वरण कर चुकी हूँ। यदि आप सचमुच मेरी तपस्या से प्रसन्न होकर यहाँ पधारे हैं तो मुझे अपनी अर्धांगिनी के रूप में स्वीकार कर लीजिये। ‘तब ‘तथास्तु’ कहकर मैं कैलाश पर्वत पर लौट गया।
प्रातः होते ही तुमने पूजा की समस्त सामग्री नदी में प्रवाहित करके अपनी सखी सहित व्रत का वरण किया। उसी समय गिरिराज अपने बंधु – बांधवों के साथ तुम्हे खोजते हुए वहाँ पहुंचे। तुम्हारी दशा देखकर अत्यंत दुःखी हुए और तुम्हारी इस कठोर तपस्या का कारण पुछा। तब तुमने कहा – ‘पिताजी, मैंने अपने जीवन का अधिकांश वक़्त कठोर तपस्या में बिताया है। 
मेरी इस तपस्या के केवल उद्देश्य महादेवजी को पति के रूप में प्राप्त करना था। आज मैं अपनी तपस्या की कसौटी पर खरी उतर चुकी हूँ। चुंकि आप मेरा विवाह विष्णुजी से करने का निश्चय कर चुके थे, इसलिये मैं अपने आराध्य की तलाश में घर से चली गयी। 
अब मैं आपके साथ घर इसी शर्त पर चलूंगी कि आप मेरा विवाह महादेवजी के साथ ही करेंगे। पर्वतराज ने तुम्हारी इच्छा स्वीकार करली और तुम्हे घर वापस ले गये। कुछ समय बाद उन्होने पूरे विधि – विधान के साथ हमारा विवाह किया।”
भगवान् शिव ने आगे कहा – “हे पार्वती! भाद्र पद कि शुक्ल तृतीया को तुमने मेरी आराधना करके जो व्रत किया था, उसी के परिणाम स्वरूप हम दोनों का विवाह संभव हो सका। 
इस व्रत का महत्त्व यह है कि मैं इस व्रत को पूर्ण निष्ठा से करने वाली प्रत्येक स्त्री को मन वांछित फल देता हूँ।” भगवान् शिव ने पार्वतीजी से कहा कि इस व्रत को जो भी स्त्री पूर्ण श्रद्धा से करेगी उसे तुम्हारी तरह अचल सुहाग प्राप्त होगा।
इस व्रत को ‘हरितालिका’ इसलिये कहा जाता है क्योंकि पार्वती कि सखी उन्हें पिता और प्रदेश से हर कर जंगल में ले गयी थी। ‘हरित’ अर्थात हरण करना और ‘तालिका’ अर्थात सखी होता है ।इसके बाद आरती गाकर हरितालिका पूजा का समापन होता है….. 

भगवान शिव जी की आरती

अपनी पूजा और व्रत को सफल बनाने हेतु माँ पार्वती से विशेष प्राथना करना चाहिए ।

ग्यारहवे भाव का शुक्र

ग्यारहवे भाव मे शुक्र होने पर ऐसे लोग विसुअल इफ़ेक्ट, कार्टून, टीवी सीरियल की एडिटिंग इत्यादि का कार्य करते है, इस भाव मे शुक्र विसुअल साधन और मिडिया जगत की और रास्ते देने के लिए जाने जाते है, एनीमेशन या टीवी से सम्बंधित काम करना जातक को उत्साहित रखता है,

जातक के पिता अपनी वाणी से धन् कमाते है,, तथा छोटा भाई सौभाग्य शाली होता है जो धन्यवाद कमाने के लिए ही जाना जाता है,,,

इस भाव मे शुक्र होने पर स्त्री मित्र की सहभागिता अच्छी प्राप्त होती है,, !

जातक की पत्नी, जातक द्वारा कमाया धन् ज्यादातर अपने मायके के लिए खर्च करती देखि जाती है, |तथा अपने मायके मे अपना प्रभुत्व रखती है |

ऐसे जातक ज़मीन से जुड़े तथा असावादी ब्यक्तित्व के होते है, ये अपने मिट्टी से जुड़े होने के कारण उसमे कुछ ना कुछ करते रहते है, जैसे खेती,, गार्डनिंग इत्यादि |

इनकी माता विचित्र स्वाभाव की होती है, धन् के प्रति कोई मोह नहीं होता, दोनों हाथो से धन् लुटाती है, परन्तु अपने पति और संतान के कारण जितना धन्यवाद ये खरवह करेगी उससे अधिक बढ़ता है |

कुलमिलाकर ग्यारहवे भाव मे शुक्र होने पर जीवनसाथी हर्षोल्लास के साथ निर्वाह होता है |

दशवे भाव का शुक्र

दशवे भाव का शुक्र माता अथवा पत्नी द्वारा शासित मना जाता है, इनके कार्य भी ज्यादातर स्त्री वर्ग से जुड़े होते है, जैसे साज श्रृंगार या घर ग्रहस्थी से जुडा कोई काम ही करते है, !!

ऐसे जातक का पिता आरामतलब होता है, जिसकारण माता ही घर का संचालन का करती है,, जातक के पास बहुत सारी आजीवकाये होती है, अक्सर देखा जाता है की इनकी दो शादिया होती है, और गृहस्त जीवन मे सुख की थोड़ी कामी भी पायी जाती है “

जातक के पास काम ही काम होने के कारण उसके जीवन को उलझाए रखता है, ऐसे जातक कमाए हुए धन् को ब्यर्थ के काम अर्थात शनि से जुड़े कामों मे खर्च करते है,,,

इस प्रकार के जातक दुसरो के कार्य मे साधन जुटाने का कार्य करते है,, “”तथा इनके मालिक स्त्री जाती की हो होती है,, किसी ना किसी तरीके से ये घर की साज सज्जा का ही कार्य करते है जैसे – घरों मे पत्थर लगाना, कढ़ाई, या काशिद दारी इत्यादि वाले कार्य करते है |””

नवमे भाव मे शुक्र

नवम भाव गुरु का भाव है साथ साथ यह धर्म और भाग्य का भाव भी होता है, चुकी शुक्र सभी सुख दाता है अतः वाह इस भाव मे राजसिक सुख वैभव देता है, इस भाव वाले जातक जन्म के बाद पिता को पैसे का अभाव नहीं होने देते, पैसे चाहे जैसे भी आये मगर आते है, ऐसे जातक बैंकिंग मे ज्यादा योगदान देते है, क्युकी बैंक पैसे से सम्बंधित उद्योग है, कुल मिलाकर यहाँ शुक्र विराजमान होने पर लक्ष्मी देवी की बिशेष कृपा प्राप्त होती है,

शुक्र नवम भाव मे होने पर जातक की वर अथवा वधु कुल की शोभा बढ़ाने वाले अर्थात अति सुन्दर और धार्मिक होते है, शादी के बाद ऐसे जातको के धन् बढ़ते ही रहते है !””

अगर शुक्र के साथ किसी पाप गृह का प्रभाव हो तो जातक बुरी संगत से लीप्त होने की आशंका होती है,, तथा शुक्र पाप ग्रह से लीप्त होकर शुभ फल मे कमी ले आता है, ” |

शुक्र नवम मे उपस्थित होकर जातक को धन् के प्रति आकर्षित करती है, धन् के अलावा दूसरा कुछ रास नहीं आता, यहीं कारण है की जातक निरंतर प्रयासरत रहता है और अधिक धन् पाने की, और उसकी रक्षा हेतु धार्मिक कार्यों मे संलग्न रहता है, “ऐसा भी कहा जाता है की ऐसे जातक पूजा पाठ धनवान होने की अभिलाषा से करता है,

यहाँ शुक्र विराजमान होने के कारण यह अपनी माता को गुप्त रोग तथा पिता को मोटापा उपहार मे देता है, !

अस्टम भाव मे शुक्र

अस्टम मे शुक्र होने पर जातक पूर्ण जीवन अपनी अभिलाषाओं से घिरा होता है, एक इच्छा ख़त्म नहीं होती की दूसरी जाग जाती है,देखा जाता है की माता पिता के द्वारा सुझाये रिश्तेदार मे ना बंधकर ये अपने लिए स्वंम रिश्ता ढूंढ लेते है,,,, “!

जातक बात बात पर गुस्सा करने का स्वाभाव रखते है, चुकी यह ससुराल पक्ष का भाव है, तथा अचल सम्पति का भाव होने के कारण ससुराल से इन्हे भारी मात्रा मे संपत्ति प्राप्त होती है, “|

कही कही देखा जाता है की जातक अपनी की कामी स्वाभाव के कारण अपने शरीर का ह्वास करते पाए जाते है, जो बाद मे जाकर उन्हें रोगी भी बना देता है, लेकिन किसी किसी जातक को कुंडली की अच्छी अवस्था मे यह दीर्घाऊ भी प्रदान करता है !”””‘

कई ज्योतिष शुक्र के आठवे घर मे अशुभ फल ज्यादा देखते है, जो सही नहीं है,यह घर शुभ फल भी देता है, जो जातक को राजा सामान सुखो का भोग करवाता है, शुक्र और बुद्ध अस्टम मे विराजमान होने पर जातक को धन् की कोई कमी नहीं होती, वो अपनी कार्यछमता और कुशलता से दस को सौ गुना करने वालो मे से होते है, “|

अस्टम भाव मे शुक्र बुद्ध की उपस्थिति मे लक्ष्मीनारायण योग का निर्माण करता है जिससे जातक का जन्म काफी अच्छे और समृद्ध परिवार मे होता है, ऐसे जातक के जीवन का मुख्य उद्देश्य भवन तथा प्रॉपर्टी को बढ़ाना होता है, तथा ये अपने कमाई का ज्यादातर हिस्सा भवन निर्माण, या फिर प्रॉपर्टी पर खर्च करते है,

शुक्र अस्टम भाव मे होने से जातक बचपन मे नाना की संपत्ति का भोग करता है किन्तु बड़े होकर वाह उस स्थान से दूर होता जाता है, |

अस्टम भाव मंगल का भाव है जिसकरण शुक्र मंगल के साथ मिलकर अच्छे योग निर्माण करता है जिससे जातक मिलिट्री मे जा सकते है या फिर कम्प्यूटर छेत्र मे या अन्य आईटी टेक्नोलॉजी के छेत्र मे अपना नाम कमाते है, !”

शुक्र अस्टम होकर रोग तो अवश्य देता है, “किन्तु जवानी मे किये गए कार्यों का फल देने के लिए दीर्घायुता भी प्रदान करता है “!

अस्टम भाव तंत्र मंत्र की शक्ति का भी होता है जिससे जातक इस प्रकार की ब्यर्थ के कामों मे भी कभी कभी उलझा पाया जाता है, अस्टम का शुक्र अपनी माता और नानी को कुछ कस्ट देने वाला भी होता है,,, और ये काफी मेहनती होते है “

उपाए – शुक्र के अच्छे फल प्राप्त करने हेतु, संतोषी माता की उपासना करनी चाहिए, तथा नियमित कुछ दान करे जिससे बुरे प्रभाव नस्ट हो जायेंगे |

कर्मफल की जुडी कथा

जब ऋषि के श्राप से प्रेरित तक्षक नाग राजा परीक्षित को डसने जा रहा था, तब मार्ग में महर्षि कश्यप से उनकी भेंट हुयी। तक्षक ने ब्राह्मण का वेश बनाया और पूछा, ‘‘महाराज, आप इतनी उतावली में कहाँ जा रहे हो।’’ तब ऋषि कश्यप ने कहा कि ‘‘तक्षक नाग राजा परीक्षित को डसने जा रहा है और मेरे पास ऐसी विद्या है कि मैं राजा परीक्षित को पुनः जीवन दान दे दूँगा।’’

तक्षक ने सुना तो अपना परिचय दिया, कहा ‘‘ऋषिवर, मैं ही तक्षक हूँ और मेरे विष का प्रभाव है कि कोई आज तक मेरे विष से बच नहीं सका।’’ तब ऋषि कश्यप ने कहा कि मैं अपनी मंत्र शक्ति से राजा परीक्षित को फिर से जीवित कर दूँगा। इस पर तक्षक ने कहा, ‘‘यदि ऐसी बात है तो आप इस वृक्ष को हरा-भरा करके दिखाइये, मैं इसे डस कर भष्म कर देता हूँ।’’

ज्यों तक्षक नाग ने हरे-भरे वृक्ष को डंस मारा, त्योंहि वह हरा-भरा वृक्ष विष के दुष्प्रभाव से जल कर राख हो गया। तब ऋषि कश्यप ने अपने कमण्डल से अपने हाथ में जल लेकर वृक्ष की राख मेें छींटा मारा तो वह वृक्ष अपने स्थान पर फिर से हरा-भरा होकर अपने स्थान पर खड़ा हो गया।

तक्षक को बड़ा आश्चर्य हुआ और पूछा, ऋषिवर आप वहाँ किस कारण से जा रहे हैं। इस पर ऋषि कश्यप ने बताया कि मैं राजा परीक्षित के प्राणों की रक्षा करूँगा तो मुझे बहुत-सा धन मिलेगा। तक्षक ने ऋषि कश्यप को संभावना से ज्यादा धन देकर विदा करना चाहा लेकिन ऋषि कश्यप ने यह उचित नहीं समझा और नहीं माने।

वहाँ पर तक्षक ने ऋषि कश्यप को गरूड़ पुराण की कथा सुनायी, जिससे ऋषि कश्यप को ज्ञान हुआ कि जिसने जो कर्म किया वह अवश्य ही भोगना पड़ेगा और किसी के बचाने से कोई बच नहीं सकता। इस प्रकार से ऋषि कश्यप बहुत-सा धन लेकर वहीं से विदा हो गये।